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सेल्यूलर जेल ( कलापनी ) कैसा है?

सेल्यूलर जेल या जिसे हम कालापनी भी कहते है भारतीय इतिहास की सबसे बहुचर्चित जेल थी।इस जेल का नाम सुनते ही क़ैदियों की रूह काँप जाती थी।यह जेल अंडमान और निकोबार की राजधानी पोर्ट ब्लेयर में स्थित है। इस जेल का निर्माण अंग्रज़ो ने करवाया था।इस जेल में उन क़ैदियों को रखा जाता था जो अंग्रज़ो के ख़िलाफ़ बग़ावत करते थे या फिर जो भारत को आज़ाद कराने के बात करते थे। कहते है की भगवान श्री राम ने लंका में चढ़ाई के लिए सबसे पहले इसी रास्ते को चुना था बाद में इस निर्णय को बदलकर रामसेतु बना कर लंका पर चढ़ाई की गई।

द्वितीय विश्व युद्ध 1942 के दौरान जापान ने अंडमान निकोबार द्वीप समूह पर क़ब्ज़ा कर लिया था और अंग्रेज़ी सेना को खदेड़ दिया था।हालाँकि द्वितीय विश्व युद्ध ख़त्म होते ही 1945 में अंग्रेजों ने इस द्वीप को वापस अपने क़ब्ज़े में ले लिया था।अंग्रेजों के जमाने में दी जाने वाली कालापानी की सजा मौत से भी ज़्यादा बदतर थी। इस जेल में क़ैदियों को ज़िंदा रहते वो ताड़ना झेलने पड़ते थे जो मौत से भी ज़्यादा ख़राब थी।

इस जेल का निर्माण कार्य 1896 में शुरू किया गया था और क़रीब 10 साल के बाद 1906 में जेल बनकर तैयार हो गई थी। जेल को बनाने में लगभग 5 लाख की लागत आयी थी।इस जेल की टोटल 7 ब्रांचेज थी और ये सातों ब्रांच बीच में बने एक लंबे टावर से जुड़ी हुई थी। टावर इस प्रकार से बनाया गया था की लगभग सभी क़ैदियों पर एक समान नज़र रखी जा सके। टावर पर एक बड़ा सा घंटा भी बंधा हुआ था जिससे संभावित ख़तरे को भाँपा जा सके। इस जेल में लगभग 700 कोठरियाँ थी जो 15/8 की बनी हुई थी। हर कोठरी में 3 मीटर ऊँचा एक रोशनदान जिससे की आराम से कोठरी में हवा आ सके लेकिन इन कोठरियों के ज़रिए क़ैदी एक दूसरे से बात नहीं कर सकते थे।

1857 की क्रांति के बाद जिन लोगों को पकड़ा जाता था उन्हें फाँसी पे लटका दिया जाता था या फिर उन्हें टॉप के सामने उड़ा दिया जाता था।लेकिन इस वजह से लगातार विद्रोह हो थे तो अंग्रेज सरकार ने इसे दबाने के लिए मेनलैंड से अलग एक आइलैंड को चुना जहां क़ैदियों को रखा जा सके और तब अंडमान निकोबार आइलैंड को संज्ञान में लाया गया। 1857 क्रांति के बाद सबसे पहले 200 क़ैदियों को यहाँ भेजा गया और फिर बाद में कराची से 1868 में 700 और क़ैदियों को भेजा गया।

ऐसा माना जाता है की कलापनी जेल से अभी तक कोई भाग नहीं पाया है परंतु ऐसा नहीं है जब यह जेल नहीं बनी थी तब इस जेल से दो बार भागने की कोशिश हुई थी। 1968 में 268 क़ैदी जेल से भाग गये थे किंतु उनको पकड़ किया गया था और उनके से 87 को जेलर द्वारा फाँसी पर लटका दिया गया था। 1872 में फिर से दो क़ैदियों ने एक लकड़ी की नाव बनाकर उसने बैठकर बंगाल की खाड़ी तक पहुँच गये थे।

Havelock island or Swaraj dweep beautiful photos

Arun Tripathi

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